प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज | premanand Maharaj
भारत की संत परंपरा बहुत प्राचीन और समृद्ध रही है। हर युग में किसी न किसी रूप में संतों ने समाज को धर्म, प्रेम, शांति और भक्ति का मार्ग दिखाया है। वर्तमान युग में भी ऐसे कई संत हैं, जो आधुनिक जीवन की आपाधापी में लोगों को आंतरिक शांति और अध्यात्म का मार्ग दिखा रहे हैं। प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज उन्हीं संतों में से एक हैं। उनका जीवन एक आदर्श सन्यासी, रसिक भक्त, और त्यागी संन्यासी का उदाहरण है। यह निबंध उनके जीवन, शिक्षाओं और विशेषताओं पर प्रकाश डालता है।
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🌱 प्रारंभिक जीवन
प्रेमानंद गोविंद शरण जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सर्सौल ब्लॉक के एक छोटे से गाँव में 30 मार्च 1969 को हुआ था। उनका बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्डेय था। वे एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके पिता श्री शंभू पाण्डेय और माता श्रीमती रामा देवी थीं।
बाल्यकाल से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे। जब उनके साथी बच्चे खेलों में रुचि लेते थे, तब अनिरुद्ध भगवान की कहानियों, रामायण, गीता और भागवत में गहरी रुचि दिखाते थे। पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई के बाद ही उनमें वैराग्य का भाव प्रकट हो गया।
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🧘 सन्यास और त्याग
केवल 13 वर्ष की आयु में उन्होंने घर छोड़ दिया और भगवान की खोज में निकल पड़े। वे वाराणसी पहुँचे और वहाँ गंगा तट पर साधना करने लगे। इस छोटी उम्र में भी उनका आत्मविश्वास और भक्ति अद्भुत थी।
वाराणसी में उन्होंने आध्यात्मिक साधकों से संपर्क किया और भजन-कीर्तन, ध्यान, और सत्संग में लीन हो गए। यहीं उन्हें दिव्य अनुभूतियाँ हुईं। वे राधा-कृष्ण की लीलाओं में तन्मय रहने लगे। इसके बाद उन्होंने वृंदावन की ओर प्रस्थान किया, जो कि राधा-कृष्ण भक्ति का केंद्र है।
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🕉️ दीक्षा और सम्प्रदाय
वृंदावन पहुँचने के बाद उन्हें गौरंगी शरण जी महाराज के चरणों में शरणागति मिली। गौरंगी शरण जी ने उन्हें “श्री हित राधा वल्लभ संप्रदाय” की दीक्षा दी। इस संप्रदाय में राधा जी को परम तत्त्व माना जाता है और भक्ति को श्रृंगार रस के रूप में अनुभव किया जाता है।
प्रेमानंद जी को दो प्रकार की दीक्षा प्राप्त हुई:
1. शरणागति मंत्र — जिसमें आत्मा को प्रभु को समर्पित किया जाता है।
2. निज मंत्र (सहचर भाव) — जिसमें भक्त स्वयं को राधा जी की सखी मानकर सेवा और भक्ति करता है।
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🏵️ विशेषताएँ
प्रेमानंद महाराज के जीवन में कई ऐसी विशेषताएँ हैं, जो उन्हें अन्य संतों से अलग बनाती हैं। नीचे उनकी प्रमुख विशेषताओं का विवरण दिया गया है:
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1. भक्ति की गहराई
प्रेमानंद जी की भक्ति कोई साधारण भक्त की तरह नहीं है। वे रसिक भक्ति के मार्ग पर चलते हैं, जहाँ केवल भगवान से प्रेम होता है, बिना किसी स्वार्थ के। उनकी भक्ति में राधा-कृष्ण के प्रति सखी भाव होता है, जिसमें भक्त स्वयं को राधा रानी की सखी मानकर सेवा करता है।
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2. त्याग और ब्रह्मचर्य
उन्होंने किशोरावस्था में ही घर, परिवार, आराम, सुविधा, पढ़ाई आदि सभी सांसारिक चीजें त्याग दीं। उनका जीवन आज भी सादा, संयमित, और पूर्ण ब्रह्मचर्य में स्थित है। वे हर प्रकार की वासना, लोभ, मोह से दूर रहते हैं। उनका आचरण युवाओं के लिए आदर्श है।
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3. बीमारी में भी साधना से न हटना
प्रेमानंद महाराज को गंभीर किडनी की बीमारी है और उन्हें नियमित डायलिसिस करानी पड़ती है। इसके बावजूद वे कभी सत्संग, प्रवचन या भजन से दूर नहीं हुए। उनका यह बलिदान, श्रद्धा और साधना का उदाहरण है। यह दिखाता है कि सच्चा संत अपने शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से साधना करता है।
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4. सादा जीवन – उच्च विचार
उनका रहन-सहन अत्यंत साधारण है। महंगे वस्त्र, आडंबर, प्रचार, गद्दी आदि से दूर रहते हैं। वे अक्सर बिना चप्पल के ही परिक्रमा करते हैं और भक्तों से बहुत सामान्य भाषा में संवाद करते हैं। उनका व्यक्तित्व विनम्रता और आत्मिक तेज से परिपूर्ण है।
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5. ज्ञान और भाषा की सरलता
प्रेमानंद जी के प्रवचन सरल, मधुर और हृदयस्पर्शी होते हैं। वे गूढ़ वेदांत, भागवत, रास लीला जैसे विषयों को भी ऐसे सरल भाषा में बताते हैं कि सामान्य व्यक्ति भी उसका मर्म समझ सके। उनकी वाणी में प्रेम और करुणा होती है, जिससे सुनने वाला सहज ही प्रभु प्रेम में डूब जाता है।
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6. रात्रि पदयात्रा (अब बंद)
कुछ वर्ष पहले तक वे रात में पदयात्रा पर निकलते थे। बिना किसी प्रचार या दिखावे के, वे भक्तों के द्वार-द्वार हरि नाम करते हुए जाते थे। हालांकि अब यह बंद कर दी गई है, लेकिन यह परंपरा उनकी निःस्वार्थ सेवा और तपस्या का प्रतीक बन चुकी है।
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7. सम्प्रदाय से ऊपर उठकर प्रेम की शिक्षा
हालाँकि वे राधा वल्लभ संप्रदाय से जुड़े हैं, लेकिन उन्होंने कभी किसी अन्य संप्रदाय की निंदा नहीं की। वे मानते हैं कि सभी संप्रदायों का मूल एक ही है — भगवान से प्रेम। यही कारण है कि उनके सत्संग में सभी वर्ग, जाति, धर्म और संप्रदाय के लोग सम्मिलित होते हैं।
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8. समाज पर प्रभाव
उनके लाखों अनुयायी हैं। आम लोगों से लेकर बड़े-बड़े कलाकार और राजनेता तक उनके प्रवचनों में सम्मिलित होते हैं। उदाहरण के लिए, विराट कोहली और अनुष्का शर्मा जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति भी उनके दर्शन के लिए वृंदावन जाते हैं।
उनके द्वारा प्रवर्तित शिक्षाएँ जैसे — संयम, ब्रह्मचर्य, माता-पिता की सेवा, नारी सम्मान और भक्ति — युवाओं में नैतिकता और आस्था को पुनर्जीवित कर रही हैं।
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🏡 आश्रम – श्री हित राधा केली कुंज
उनका आश्रम वृंदावन में स्थित है, जिसका नाम है:
📍 श्री हित राधा केली कुंज,
वाराह घाट, वृंदावन परिक्रमा मार्ग के पास।
यहाँ प्रतिदिन सत्संग, भजन, कथा, सेवा आदि होते हैं। देश-विदेश से भक्त यहाँ आकर साधना करते हैं, और प्रेमानंद जी के चरणों में शांति पाते हैं।
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प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज एक ऐसे संत हैं जिन्होंने आधुनिक युग में भी भक्ति, प्रेम, त्याग और शुद्ध आचरण को जीवित रखा है। उनका जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा है कि भक्ति केवल वृद्धावस्था का विषय नहीं, बल्कि जीवन का केंद्र हो सकती है।
उनकी विशेषताएँ — जैसे ब्रह्मचर्य पालन, रसिक भक्ति, निःस्वार्थ सेवा, साधना में अडिगता, और सरलता — उन्हें आज के संत समाज में एक विशेष स्थान प्रदान करती हैं। वे अपने जीवन से यह सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति में ही परम सुख है, और प्रेम ही परमात्मा तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है।
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प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि वे शुद्ध भक्ति, प्रेम, और त्याग के प्रतीक माने जाते हैं। उनका जीवन और शिक्षाएं सीधे हृदय को स्पर्श करती हैं। नीचे उनकी कुछ मुख्य विशेषताएं संक्षेप में दी जा रही हैं:
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💠 1. अद्वितीय भक्ति भावना (रसिक भक्ति)
महाराज जी की भक्ति राधा-कृष्ण के प्रति अत्यंत भावपूर्ण और रसिक है।
वे “सखी भाव” या “सहचर भाव” में साधना करते हैं, जहाँ भक्त राधा रानी की सखी बनकर सेवा करता है।
यह भावना दुर्लभ और अत्यंत सूक्ष्म है — केवल गहरी साधना से अनुभव की जाती है।
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💠 2. त्यागी जीवन
मात्र 13 वर्ष की आयु में घर त्याग दिया और सन्यासी जीवन अपनाया।
संपूर्ण ब्रह्मचर्य, संयमित जीवन, भौतिक सुखों से पूरी दूरी बनाए रखी।
आज भी सादगी, सेवा, और तपस्या का जीवन जीते हैं।
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💠 3. नाम-स्मरण और साधना पर ज़ोर
वे हर समय नाम-जप, कीर्तन, ध्यान और शास्त्र-संगति पर बल देते हैं।
कहते हैं:
"हरि नाम ही सबसे बड़ा साधन है, जो अंतर को शुद्ध करता है।"
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💠 4. वैराग्य और विनम्रता
बड़े से बड़ा व्यक्ति भी उनसे मिलने आए, फिर भी वे गर्व या अहंकार से दूर रहते हैं।
गद्दी, प्रचार, चमत्कार की चाह नहीं रखते — केवल प्रेम और सेवा में लीन रहते हैं।
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💠 5. गहन ज्ञान और सरल भाषा में प्रवचन
उनके प्रवचन संस्कृत ग्रंथों के गूढ़ अर्थों को बहुत सरल हिंदी में समझाते हैं।
वे श्रोताओं को हँसी, भाव-विभोरता, और प्रेम में डुबो देते हैं।
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💠 6. बीमारी में भी भक्ति से न डिगना
उन्हें किडनी की गंभीर बीमारी है और नियमित डायलिसिस करानी पड़ती है।
इसके बावजूद वे सत्संग, प्रवचन, सेवा में कभी रुके नहीं — यह उनका संकल्प और तपस्या दर्शाता है।
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💠 7. भीड़ से नहीं, भाव से जुड़ाव
प्रेमानंद जी कभी प्रसिद्धि या अनुयायी बढ़ाने के पीछे नहीं भागे।
वे कहते हैं:
> "एक सच्चा भावुक भक्त ही लाखों श्रोताओं से श्रेष्ठ होता है।"
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💠 8. सम्प्रदाय के पार प्रेम
यद्यपि वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय से हैं, लेकिन उन्होंने कभी सम्प्रदायिकता नहीं फैलाई।
उनका प्रेम सबके लिए है — किसी भी भक्त, जाति, वर्ग या मत से।
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💠 9. रात्रि पदयात्रा (अब बंद)
पहले वे रात में पदयात्रा पर निकलते थे — बिना किसी प्रचार या सुरक्षा के, बस हरि नाम करते हुए।
यह निःस्वार्थ सेवा और भक्ति की पराकाष्ठा मानी गई।
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💠 10. नारी सम्मान और चरित्र पर ज़ोर
वे कहते हैं कि नारी का सम्मान करना ही सच्चा धर्म है।
युवाओं को संयम, चरित्र, ब्रह्मचर्य अपनाने की प्रेरणा देते हैं।
विशेषता विवरण
भक्ति राधा-कृष्ण के प्रति रसिक, सहचर भाव
जीवनशैली ब्रह्मचारी, त्यागी, तपस्वी
शिक्षा शुद्ध प्रेम, सेवा, नाम स्मरण
आचरण सादगी, विनम्रता, करुणा
स्वास्थ्य किडनी रोग के बावजूद साधना में रत
संदेश "प्रेम ही परम तत्व है"
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प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज आज के समय में इतने लोकप्रिय (Popular) क्यों हैं, इसके पीछे कई गहरे कारण हैं। उनकी लोकप्रियता सिर्फ उनके नाम या प्रचार से नहीं है, बल्कि उनके जीवन, भक्ति, व्यवहार, और शिक्षाओं की सच्चाई से उपजी है। नीचे सरल भाषा में बताया गया है कि लोग उन्हें इतना क्यों पसंद करते हैं:
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🔥 प्रेमानंद महाराज क्यों लोकप्रिय हैं?
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1. सच्ची भक्ति और भावुकता
वे सिर्फ शास्त्रों की बातें नहीं करते, बल्कि अपने जीवन से भक्ति को जीकर दिखाते हैं।
जब वे भजन या कथा सुनाते हैं, तो खुद भी भाव-विभोर हो जाते हैं — जिससे श्रोता का दिल भी पिघलता है।
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2. सरल और मधुर भाषा
उनके प्रवचन बड़े-बड़े शब्दों में नहीं, बल्कि सीधी-सादी हिंदी में होते हैं — जो गांव से लेकर शहर तक, सभी को समझ आती है।
वे हँसी-हँसी में गंभीर बातें कह देते हैं, जो लोगों को छू जाती हैं।
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3. त्याग और ब्रह्मचर्य का आदर्श
उन्होंने बहुत छोटी उम्र में घर त्याग दिया और आज तक संयमित जीवन जी रहे हैं।
न शादी, न पैसा, न संपत्ति — उनका जीवन केवल भक्ति और सेवा को समर्पित है।
➡️ यह लोगों के मन में श्रद्धा पैदा करता है।
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4. सादगी और विनम्रता
महाराज जी के पास ना गाड़ी का काफिला होता है, ना निजी सुरक्षा, फिर भी लाखों लोग उन्हें सुनने आते हैं।
वे बड़े-बड़े लोगों से मिलने पर भी गर्व नहीं करते, और गरीब भक्तों से भी मिलने में झिझकते नहीं।
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5. बीमारी में भी सेवा जारी
उन्हें किडनी की बीमारी है, और वे डायलिसिस पर हैं। फिर भी वे रोज़ भजन, सत्संग, कथा और सेवा करते हैं।
इससे लोग उन्हें एक “असली साधक” के रूप में मानते हैं — जो केवल बोलते नहीं, कठिनाइयों में भी भक्ति निभाते हैं।
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6. सोशल मीडिया पर सकारात्मक उपस्थिति
यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक पर उनके भजन और प्रवचन करोड़ों लोग देखते हैं।
लेकिन उन्होंने खुद कभी प्रचार नहीं किया, उनके भक्तों ने ही उनके प्रवचनों को वायरल किया।
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7. हर वर्ग के लिए अपनापन
वे किसी भी जाति, धर्म, वर्ग के व्यक्ति को प्रेम से अपनाते हैं।
चाहे कोई बच्चा हो, बुज़ुर्ग हो, अमीर हो या गरीब — सबको एक नजर से देखते हैं।
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8. राधा-कृष्ण प्रेम का अनोखा अंदाज़
वे भक्तों को सिर्फ नियम या डर से नहीं जोड़ते — बल्कि प्रेम से ईश्वर से जोड़ते हैं।
उनके भजन और कथाएँ राधा रानी के स्नेह से भरी होती हैं, जिससे भक्तों को मन की शांति और आनंद मिलता है।
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प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का व्यवहार उनके पूरे व्यक्तित्व की सबसे खास और प्रभावशाली विशेषता है। उनका व्यवहार इतना सरल, मधुर, विनम्र और आत्मीय होता है कि जो भी एक बार उनसे मिल लेता है, वह उनका भक्त बन जाता है।
उनका व्यवहार कैसा है:
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🌸 प्रेमानंद महाराज जी का व्यवहार
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1. 🔹 सरल और सादगीपूर्ण
उनका पहनावा, बोलचाल, रहन-सहन बहुत साधारण है।
ना महंगे वस्त्र, ना दिखावा, ना पाखंड — वे सच्चे अर्थों में गांव वाले बाबा लगते हैं।
कोई भी उनके पास आसानी से जा सकता है, डर या झिझक नहीं होती।
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2. 🔹 विनम्र और नम्र स्वभाव
उनके शब्दों में घमंड का नामोनिशान नहीं है।
वे स्वयं को कभी “संत” या “गुरु” नहीं कहते, बस कहते हैं —
> "मैं तो राधा रानी की कृपा से कुछ बोल पा रहा हूँ।"
जब लोग उनकी प्रशंसा करते हैं, वे उसे तुरंत भगवान की कृपा मानते हैं।
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3. 🔹 सबसे प्रेमपूर्वक मिलते हैं
चाहे सामने गरीब बच्चा हो या बड़ा उद्योगपति, वे सभी से एक समान प्रेम से मिलते हैं।
दूर से आए लोगों को भी व्यक्तिगत ध्यान देते हैं, चाहे वे कितने भी व्यस्त हों।
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4. 🔹 मजाकिया और आत्मीय व्यवहार
उनके प्रवचनों में अक्सर हँसी-मज़ाक, चुटकुले और व्यावहारिक उदाहरण होते हैं, जो माहौल को हल्का बना देते हैं।
वे भक्तों को डराकर नहीं, हँसाकर और समझाकर आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं।
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5. 🔹 क्रोध नहीं करते
उनके पास कोई चिल्लाना, डाँटना या डांभिक भाषा नहीं पाई जाती।
अगर कोई भक्त गलती कर दे, तो वे मुस्कराकर समझाते हैं:
> "बेटा, सेवा में चूक हो जाए तो फिर से कर लेना, राधे राधे कहो।"
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6. 🔹 सेवकों और भक्तों का सम्मान करते हैं
जो लोग उनके साथ रहते हैं, जैसे उनके सेवक, रसोइये, वाहन चालक — उन सबको वे परिवार जैसा सम्मान देते हैं।
किसी को नीचा दिखाना, दुत्कारना या तिरस्कार करना उनके स्वभाव में नहीं है।
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7. 🔹 दिखावे से दूर, आत्मा से जुड़ाव
वे कहते हैं:
> "मैं किसी का गुरु नहीं, सबके साथ प्रेम बांटने आया हूँ।"
वे सच्चे संत की तरह व्यवहार करते हैं, जिनके पास आकर भक्त को ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव होता है।
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गुण विवरण
सादगी बिना दिखावे का जीवन
विनम्रता किसी प्रकार का अहंकार नहीं
प्रेमभाव सबके साथ आत्मीयता से मिलते हैं
हास्यप्रियता प्रवचन में हल्के-फुल्के चुटकुले भी
शांत स्वभाव क्रोध से बहुत दूर
समान दृष्टि अमीर-गरीब सबको एक समान मानते हैं
प्रेमानंद महाराज जी का व्यवहार वैसा ही है जैसा एक सच्चे संत और साधक का होना चाहिए —
प्रेममय, सरल, और हृदय से निकला हुआ।
उनका व्यवहार ही उन्हें औरों से अलग बनाता है। वे लोगों को अपना बना लेते हैं, डर नहीं देते
— प्रेम देते हैं।
🪔 निष्कर्ष
प्रेमानंद महाराज इसलिए लोकप्रिय हैं, क्योंकि:
वे सच में भक्ति जीते हैं।
उनका व्यवहार और वाणी प्रेम से भरी होती है।
वे दिखावे से दूर, त्याग और सेवा के प्रतीक हैं।
वे वो संत हैं जिन्हें लोगों ने सोशल मीडिया पर नहीं ढूंढा, बल्कि उनकी भक्ति ने लोगों को खींच लिया।
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